नमस्ते दोस्तों आज हम जानेंगे की मकर संक्रांति कब है? और इसका क्या महत्त्व है? मकर संक्रांति भारत का एक प्रमुख त्योहार है, जिसे हर साल 14 या 15 जनवरी को मनाते है। यह त्योहार सूर्य के मकर राशि में प्रवेश करने और उत्तरायण होने का प्रतीक है।
इसे नए फसलों के आगमन और ऋतु परिवर्तन के उत्सव के रूप में भी मनाया जाता है।
इस दिन लोग तिल और गुड़ से बनी मिठाइयां जैसे लड्डू और गजक का आनंद लेते हैं। पतंगबाजी का खास आयोजन होता है, जहां आसमान रंग-बिरंगी पतंगों से भर जाता है। मकर संक्रांति के दिन गंगा, यमुना या किसी अन्य पवित्र नदी में स्नान करना और दान-पुण्य करना शुभ माना जाता है।
भारत के विभिन्न राज्यों में इसे अलग-अलग नामों से मनाया जाता है, जैसे पंजाब में लोहड़ी, तमिलनाडु में पोंगल, असम में भोगाली बिहू और गुजरात में उत्तरायण। यह त्योहार न केवल खुशियों और प्रेम का संदेश देता है, बल्कि प्रकृति और कृषि के प्रति हमारी कृतज्ञता भी प्रकट करता है।
मकर संक्रांति 2025 में 14 जनवरी तारीख को है।
मकर संक्रांति शुभ मुहूर्त 2025
मकर संक्रांति 2025 में 14 जनवरी को मनाई जाएगी। इस दिन सूर्य देव धनु राशि से निकलकर मकर राशि में प्रवेश करेंगे, जिसे मकर संक्रांति कहा जाता है। पंचांग के अनुसार, 14 जनवरी 2025 को सुबह 9 बजकर 3 मिनट पर सूर्य का मकर राशि में प्रवेश होगा।
मकर संक्रांति के दिन स्नान, दान और सूर्य उपासना का विशेष महत्व होता है। इस दिन गंगा या अन्य पवित्र नदियों में स्नान करना शुभ माना जाता है। साथ ही, तिल, गुड़, खिचड़ी आदि का दान करने से पुण्य की प्राप्ति होती है। पुण्य काल का समय सुबह 9 बजकर 3 मिनट से शाम 5 बजकर 46 मिनट तक रहेगा, जिसमें दान-पुण्य करना विशेष फलदायी होगा।
मकर संक्रांति का महत्व
मकर संक्रांति का पौराणिक महत्व भारतीय धर्म और संस्कृति में बहुत गहरा है। यह त्योहार सूर्य देव और उनके उत्तरायण होने का प्रतीक है, जो अंधकार से प्रकाश की ओर जाने का संदेश देता है। हिंदू धर्म के विभिन्न ग्रंथों और कथाओं में मकर संक्रांति के महत्व को स्पष्ट रूप से बताया गया है।
पौराणिक कथाएं और मान्यताएं
- भगवान सूर्य और शनि की कथा
मकर संक्रांति के दिन सूर्य देव अपने पुत्र शनि देव से मिलने आते हैं, जो मकर राशि के स्वामी हैं। यह दिन पिता-पुत्र के आपसी संबंधों को सुधारने और शांति का प्रतीक है। - भगवान विष्णु द्वारा असुरों का नाश
पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवान विष्णु ने इस दिन असुरों का नाश करके उनके सिरों को मंदराचल पर्वत के नीचे दबा दिया था। इस घटना के साथ ही अधर्म पर धर्म की विजय हुई, और मकर संक्रांति को बुराई के अंत और नई शुरुआत के रूप में मनाया जाता है। - भीष्म पितामह का मोक्ष प्राप्ति
महाभारत के अनुसार, भीष्म पितामह ने सूर्य के उत्तरायण होने पर ही अपने प्राण त्यागे थे। ऐसा माना जाता है कि उत्तरायण के दौरान मृत्यु प्राप्त करने से आत्मा को मोक्ष की प्राप्ति होती है। - गंगा का पृथ्वी पर अवतरण
एक अन्य मान्यता के अनुसार, मकर संक्रांति के दिन गंगा नदी पृथ्वी पर भागीरथ के प्रयासों से अवतरित हुई थीं। इसलिए, इस दिन गंगा स्नान का विशेष महत्व है।
धार्मिक महत्व
- सूर्य की उपासना
मकर संक्रांति पर सूर्य देव की पूजा की जाती है, क्योंकि यह उनकी उत्तरायण यात्रा की शुरुआत है। इस दिन सूर्य की कृपा से समृद्धि, स्वास्थ्य, और ज्ञान की प्राप्ति होती है। - दान और पुण्य
मकर संक्रांति को दान-पुण्य का पर्व माना गया है। तिल, गुड़, अन्न, और कपड़े दान करने से विशेष पुण्य मिलता है। - कर्म और धर्म का संदेश
मकर संक्रांति हमें बताता है कि हमें अपने जीवन में सत्य, धर्म, और सकारात्मकता को अपनाना चाहिए।
सांस्कृतिक महत्व
यह पर्व न केवल धार्मिक दृष्टि से, बल्कि सांस्कृतिक रूप से भी महत्वपूर्ण है। यह नई फसल के आगमन और कृषि के प्रति कृतज्ञता का प्रतीक है। विभिन्न राज्यों में इसे अलग-अलग नामों और परंपराओं के साथ मनाया जाता है।
इस प्रकार, मकर संक्रांति केवल एक त्योहार नहीं है, बल्कि यह धर्म, कर्म, और प्रकृति के प्रति हमारी आस्था और समर्पण का प्रतीक है।
कृषि और फसलों का पर्व

यह त्योहार किसानों के लिए विशेष रूप से महत्वपूर्ण है, क्योंकि इस समय नई फसल का आगमन होता है। लोग इसे नई फसल और समृद्धि का उत्सव मानते हैं। तिल और गुड़ से बने पकवान इस दिन खाए जाते हैं, जो मिठास और एकता का प्रतीक हैं।
मकर संक्रांति का धार्मिक महत्व
मकर संक्रांति के दिन गंगा, यमुना, और अन्य पवित्र नदियों में स्नान करना अत्यंत शुभ माना जाता है। यह पवित्रता और पापों के नाश का प्रतीक है। इस दिन दान-पुण्य करना विशेष पुण्यकारी माना गया है।
मकर संक्रांति का सांस्कृतिक और सामाजिक महत्व
मकर संक्रांति पर देश के विभिन्न हिस्सों में अलग-अलग परम्पराये देखने को मिलती हैं। पतंगबाजी, लोक गीत, नृत्य, और मेलों का आयोजन होता है। यह पर्व लोगों को एक साथ जोड़ने और आनंद फैलाने का माध्यम है।
मकर संक्रांति का अध्यात्मिक संदेश
मकर संक्रांति हमें अंधकार से प्रकाश की ओर, असत्य से सत्य की ओर, और अज्ञान से ज्ञान की ओर जाने की प्रेरणा देता है। यह त्याग, समर्पण, और सकारात्मक ऊर्जा का प्रतीक है।
इस प्रकार, मकर संक्रांति केवल एक पर्व नहीं, बल्कि भारतीय संस्कृति, प्रकृति, और जीवन के प्रति आभार प्रकट करने का विशेष अवसर है।
मकर संक्रांति कैसे मनाया जाती है?
मकर संक्रांति भारत में बड़े उत्साह और उल्लास के साथ मनाई जाती है। यह त्योहार देश के विभिन्न हिस्सों में अलग-अलग रीति-रिवाजों और परंपराओं के साथ मनाया जाता है।
1. सूर्य पूजा और स्नान
मकर संक्रांति के दिन लोग सुबह जल्दी उठकर पवित्र नदियों, जैसे गंगा, यमुना, गोदावरी आदि में स्नान करते हैं। इसे पवित्र और शुभ माना जाता है। इसके बाद सूर्य देव की पूजा की जाती है और उन्हें जल अर्पित किया जाता है।
2. दान-पुण्य
इस दिन दान करने का विशेष महत्व है। लोग जरूरतमंदों को तिल, गुड़, कपड़े, अन्न, और धन का दान करते हैं। इसे पुण्य प्राप्ति का माध्यम माना जाता है।
3. खास पकवानों की तैयारी
मकर संक्रांति पर तिल और गुड़ से बने पकवान जैसे तिल लड्डू, गजक, रेवड़ी, और खिचड़ी बनाई जाती है। इन व्यंजनों का अपना सांस्कृतिक और स्वास्थ्य संबंधी महत्व है।
4. पतंगबाजी
इस दिन गुजरात, राजस्थान और उत्तर भारत के अन्य हिस्सों में पतंगबाजी का उत्साह बहुत होता है । लोग रंग-बिरंगी पतंग उड़ाते हैं और “वो काटा” के नारों से आसमान गूंज उठता है।
5. सांस्कृतिक आयोजन
देश के विभिन्न हिस्सों में लोक नृत्य, संगीत, मेलों और खेलकूद का आयोजन किया जाता है। यह लोगों के बीच आपसी प्रेम और भाईचारे को बढ़ावा देता है।
6. क्षेत्रीय उत्सवों का रूप
- पंजाब में लोहड़ी: आग के चारों ओर घूमकर गुड़, मूंगफली, और रेवड़ी चढ़ाई जाती है।
- तमिलनाडु में पोंगल: खास तरह का पकवान ‘पोंगल’ बनाया जाता है और प्रकृति की पूजा होती है।
- असम में भोगाली बिहू: पारंपरिक नृत्य और भोज का आयोजन होता है।
- महाराष्ट्र: लोग एक-दूसरे को तिल-गुड़ देकर कहते हैं, तीळ गुळ घ्या आणि गोड गोड बोला ! – “तिल गुड़ खाओ और मीठा बोलो।”
7. खेल और मनोरंजन
ग्रामीण क्षेत्रों में बैलगाड़ी दौड़, कुश्ती, और अन्य पारंपरिक खेलों का आयोजन किया जाता है। यह पर्व मनोरंजन और सांस्कृतिक विरासत का हिस्सा है।
इस प्रकार, मकर संक्रांति न केवल धार्मिक और सांस्कृतिक त्योहार है, बल्कि यह लोगों को प्रकृति, समाज और एक-दूसरे के साथ जुड़ने का भी अवसर प्रदान करता है।
मकर संक्रांति 2025 पर दान करना होता है शुभ
मकर संक्रांति पर दान करना अत्यंत शुभ माना जाता है। यह दिन विशेष रूप से दान-पुण्य और धार्मिक कार्यों के लिए समर्पित होता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस दिन दान करने से कई गुना पुण्य की प्राप्ति होती है और व्यक्ति के पापों का नाश होता है।
मकर संक्रांति पर दान का महत्व
- पुण्य की प्राप्ति: इस दिन सूर्य उत्तरायण होते हैं, जो सकारात्मक ऊर्जा और शुभता का प्रतीक है। ऐसे समय में किया गया दान विशेष फलदायी माना जाता है।
- सुख-समृद्धि का प्रतीक: दान से जीवन में सुख-शांति और समृद्धि आती है।
- सामाजिक जुड़ाव: दान के माध्यम से समाज के जरूरतमंद लोगों की सहायता की जाती है, जिससे मानवता का संदेश फैलता है।
मकर संक्रांति पर क्या-क्या दान करें?
- तिल और गुड़: तिल और गुड़ का दान विशेष महत्व रखता है। यह स्वास्थ्य और मिठास का प्रतीक है।
- कपड़े और अनाज: जरूरतमंदों को कपड़े, अन्न, और धन दान करना शुभ माना जाता है।
- खिचड़ी: इस दिन खिचड़ी बनाकर दान करने का विशेष रिवाज है। इसे गरीबों और भूखों को खिलाने से ईश्वर का आशीर्वाद मिलता है।
- धातु और बर्तन: लोहे, तांबे, और चांदी के बर्तन दान करना भी शुभ होता है।
मकर संक्रांति दान करने के नियम
- दान हमेशा सच्चे मन और श्रद्धा से करें।
- जरूरतमंद और गरीब लोगों को दान देना सबसे उत्तम माना गया है।
- दान करते समय विनम्र और कृतज्ञ भाव रखें।
मकर संक्रांति का पौराणिक महत्व
शास्त्रों में कहा गया है कि मकर संक्रांति के दिन किया गया दान स्वर्ग की प्राप्ति का मार्ग खोलता है। भगवान विष्णु और सूर्य देव को प्रसन्न करने का यह सबसे उत्तम समय है।
इस प्रकार, मकर संक्रांति पर दान न केवल धार्मिक दृष्टि से लाभदायक है, बल्कि यह समाज और मानवता के प्रति हमारी जिम्मेदारी को भी दर्शाता है।
निष्कर्ष
मकर संक्रांति न केवल अंधकार से प्रकाश की ओर जाने का संदेश देती है, बल्कि यह हमें धर्म, कर्म और परोपकार का मार्ग अपनाने की प्रेरणा भी देती है। इस दिन दान-पुण्य, सूर्य उपासना, और सांस्कृतिक आयोजनों के माध्यम से लोगों में भाईचारा, प्रेम और एकता का संदेश फैलता है।
यह पर्व प्रकृति और मानव जीवन के गहरे संबंध को दर्शाता है, जहां नई फसलों के आगमन पर कृतज्ञता व्यक्त की जाती है। मकर संक्रांति हमें यह सिखाती है कि जीवन में हर अंत के साथ एक नई शुरुआत होती है, और हमें सकारात्मक दृष्टिकोण के साथ आगे बढ़ते रहना चाहिए।
इस प्रकार, मकर संक्रांति केवल एक धार्मिक पर्व नहीं है, बल्कि यह जीवन में आशा, समृद्धि और समर्पण का प्रतीक है।