नमस्ते दोस्तों आज हम इस पोस्ट में जानेगे गणेश अथर्वशीर्ष (Ganesh Atharvashirsha)स्तोत्र हिंदी भगवान गणेश जी को प्रसन्न करने के लिए हमें गणपति अथर्वशीर्ष का पाठ करना चाहिए । भगवान गणेशजी विघ्न हर्ता है हमारे सारे दुखो को दूर करते है ।
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श्री गणपति अथर्वशीर्ष का महत्व(Ganesh Atharvashirsha)
श्री गणेश अथर्वशीर्ष वेदों में वर्णित एक महत्वपूर्ण उपनिषद है, जिसे गणेश उपनिषद भी कहा जाता है। यह अथर्ववेद का एक अंश है और भगवान गणेश की महिमा का गुणगान करता है। इस ग्रंथ में गणपति को परम ब्रह्म, सृष्टि के मूल कारण और सभी विघ्नों को दूर करने वाले देवता के रूप में माना जाता है।
श्री गणेश अथर्वशीर्ष के पाठ का लाभ
- सभी विघ्नों का नाश – श्री गणपति को विघ्नहर्ता कहा जाता है। इस स्तोत्र का नियमित पाठ करने से जीवन के समस्त बाधाएं और विघ्न दूर होते हैं।
- बुद्धि और ज्ञान की प्राप्ति – गणपति को बुद्धि और विवेक के देवता माना जाता है। जो व्यक्ति इस ग्रंथ का पाठ करता है, उसकी स्मरण शक्ति, निर्णय क्षमता और बुद्धिमत्ता में वृद्धि होती है।
- सकारात्मक ऊर्जा और आत्मबल – इस स्तोत्र का पाठ करने से व्यक्ति के भीतर सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है, जिससे आत्मबल और आत्मविश्वास बढ़ता है।
- सुख-समृद्धि और सफलता – व्यापार, नौकरी, शिक्षा और अन्य कार्यों में सफलता प्राप्त करने के लिए श्री गणपति अथर्वशीर्ष का पाठ अत्यंत फलदायी माना गया है।
- आध्यात्मिक उन्नति – यह ग्रंथ गणेश जी को सच्चिदानंद स्वरूप, ब्रह्म तत्व और समस्त सृष्टि का कारण बताता है। इसका पाठ करने से साधक की आध्यात्मिक उन्नति होती है।
- ग्रह दोषों का निवारण – ज्योतिष शास्त्र में गणपति उपासना को कुंडली के दोष, विशेष रूप से राहु-केतु और बुध ग्रह के अशुभ प्रभाव को कम करने में सहायक बताया गया है।
- आरोग्य (स्वास्थ्य) लाभ – यह स्तोत्र मानसिक और शारीरिक रूप से स्वस्थ रहने में सहायक होता है। विशेषकर मन की चंचलता, तनाव और भय को दूर करता है।
गणेश अथर्वशीर्ष पाठ करने की विधि
- श्री गणपति अथर्वशीर्ष का पाठ प्रातः स्नान करके शुद्ध वस्त्र धारण कर करना चाहिए।
- गणेश जी की मूर्ति या चित्र के सामने दीपक जलाकर, उन्हें दूर्वा, लाल फूल और मोदक अर्पित करें।
- शुद्ध मन और ध्यानपूर्वक इस ग्रंथ का पाठ करें।
- बुधवार, चतुर्थी तिथि और गणेश चतुर्थी के दिन इसका पाठ विशेष फलदायी होता है।
॥ श्री गणपति अथर्वशीर्ष ॥
ॐ भद्रं कर्णेभिः श्रृणुयाम देवाः।
भद्रं पश्येमाक्षभिर्यजत्राः।
स्थिरैरंगैस्तुष्टुवाꣳसस्तनूभिः।
व्यशेम देवहितं यदायुः॥
॥ श्री गणेशाय नमः ॥
ॐ नमस्ते गणपतये।
त्वमेव प्रत्यक्षं तत्त्वमसि।
त्वमेव केवलं कर्ताऽसि।
त्वमेव केवलं धर्ताऽसि।
त्वमेव केवलं हर्ताऽसि।
त्वमेव सर्वं खल्विदं ब्रह्मासि।
त्वं साक्षादात्मासि नित्यम् ॥ १ ॥
ॐ गणानां त्वा गणपतिं हवामहे।
कविं कवीनामुपमश्रवस्तमम्।
ज्येष्ठराजं ब्रह्मणां ब्रह्मणस्पत।
आ नः शृण्वन्नूतिभिः सीदसादनम् ॥ २ ॥
त्वं जिन्मयः।
त्वं चिन्मयः।
त्वमानन्दमयः।
त्वं ब्रह्ममयः।
त्वं सच्चिदानन्दाद्वितीयोऽसि।
त्वं प्रत्यक्षं ब्रह्मासि।
त्वं ज्ञानमयो विज्ञानमयोऽसि ॥ ३ ॥
सर्वं जगदिदं त्वत्तो जायते।
सर्वं जगदिदं त्वत्तस्तिष्ठति।
सर्वं जगदिदं त्वयि लयमेष्यति।
सर्वं जगदिदं त्वयि प्रत्येति।
त्वं भूमिरापोऽनलोऽनिलो नभः।
त्वं चत्वारि वाक्पदानि ॥ ४ ॥
त्वं गुणत्रयातीतः।
त्वं अवस्थात्रयातीतः।
त्वं देहत्रयातीतः।
त्वं कालत्रयातीतः।
त्वं मूलाधारस्थितोऽसि नित्यम्।
त्वं शक्तित्रयात्मकः।
त्वां योगिनो ध्यायन्ति नित्यम्।
त्वं ब्रह्मा त्वं विष्णुस्त्वं रुद्रस्त्वमिन्द्रस्त्वमग्निस्त्वं वायुस्त्वं सूर्यस्त्वं चन्द्रमास्त्वं ब्रह्म भूर्भुवः स्वरोम् ॥ ५ ॥
गणादिं पूर्वमुच्चार्य वर्णादिं तदनन्तरम्।
अनुस्वारः परतरः।
अर्धेन्दुलसितम्।
तारेण ऋद्धम्।
एतत्तव मनुस्वरूपम्।
गकारः पूर्वरूपम्।
अकारो मध्यमरूपम्।
अनुस्वारश्चान्त्यरूपम्।
बिन्दुरुत्तररूपम्।
नादः संधानम्।
संहितासन्धिः।
सैषा गणेशविद्या।
गणक ऋषिः।
निचृद्गायत्रीच्छन्दः।
गणपतिर्देवता।
ॐ गं गणपतये नमः ॥ ६ ॥
एकदन्ताय विद्महे।
वक्रतुण्डाय धीमहि।
तन्नो दंती प्रचोदयात् ॥ ७ ॥
एकदंतं चतुर्हस्तं पाशमङ्कुशधारिणम्।
रदं च वरदं हस्तैर्बिभ्राणं मूषकध्वजम्॥
रक्तं लम्बोदरं शूर्पकर्णकं रक्तवाससम्।
रक्तगन्धानुलिप्ताङ्गं रक्तपुष्पैः सुपूजितम्॥
भक्तानुकंपिनं देवं जगत्कारणमच्युतम्।
आविर्भूतं च सृष्ट्यादौ प्रकृतेः पुरुषात्परम्॥
एवं ध्यायति यो नित्यं स योगी योगिनां वरः ॥ ८ ॥
नमो व्रातपतये।
नमो गणपतये।
नमः प्रमथपतये।
नमस्तेऽस्तु लम्बोदरायैकदन्ताय विघ्ननाशिने शिवसुताय श्रीवरदाय नमो नमः ॥ ९ ॥
॥ इति श्री गणपति अथर्वशीर्ष समाप्तम् ॥
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॥ श्री गणेशाय नमः ॥
यह पाठ भगवान गणेश की कृपा प्राप्त करने और विघ्नों को दूर करने के लिए किया जाता है। इसका नित्य पाठ करने से भक्त को सिद्धि, बुद्धि, और आत्मिक शांति की प्राप्ति होती है।
निष्कर्ष
श्री गणेश अथर्वशीर्ष एक शक्तिशाली वेद मंत्र है, जिसमें भगवान गणेश की अनंत कृपा प्राप्त करने का मार्ग बताया गया है। इसका नियमित रूप से श्रद्धा और विश्वास के साथ पाठ करने से व्यक्ति को मानसिक शांति, सफलता, समृद्धि और सभी प्रकार के विघ्नों से मुक्ति मिलती है।
“ॐ गं गणपतये नमः”
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