श्री कृष्णाष्टकम् -भजे व्रजै कमण्डनं | krishnashtakam lyrics in hindi

“श्री कृष्णाष्टकम्” (krishnashtakam lyrics in hindi)एक संस्कृत स्तोत्र है जो भगवान श्रीकृष्ण की स्तुति में रचा गया है। इसे “अष्टक” इसलिए कहा जाता है क्योंकि इसमें आठ श्लोक होते हैं। संस्कृत साहित्य में अष्टक का विशेष महत्व होता है, और कई देवी-देवताओं के लिए ऐसे स्तोत्र लिखे गए हैं।

“श्री कृष्णाष्टकम्” क्यों बोला जाता है?

  1. श्रीकृष्ण की महिमा का वर्णन – इसमें भगवान श्रीकृष्ण के दिव्य गुणों, बाल लीलाओं और उनकी अनंत कृपा का वर्णन किया गया है।
  2. अष्टक (8 श्लोक) स्वरूप – यह स्तोत्र आठ श्लोकों का होता है, इसलिए इसे “अष्टकम्” कहा जाता है।
  3. भक्तों के लिए प्रभावशाली मंत्र – इसे जपने से भक्तों को श्रीकृष्ण की कृपा, शांति और भक्ति का लाभ मिलता है।
  4. संस्कृत काव्य परंपरा का पालन – अष्टक एक विशिष्ट काव्य शैली है, जिसमें किसी विशेष देवता की स्तुति की जाती है।

यह स्तोत्र विशेष रूप से आदि शंकराचार्य द्वारा रचित माना जाता है, हालांकि अन्य ऋषियों ने भी श्रीकृष्ण की स्तुति में कई अष्टक लिखे हैं।

श्री कृष्णाष्टकम् -भजे व्रजै कमण्डनं (krishnashtakam lyrics in hindi)

भजे व्रजै कमण्डनं समस्तपापखण्डनं 

स्वभक्तचित्तरञ्जनं सदैव नन्दनन्दनम् । 

सुपिच्छगुच्छमस्तकं सुनादवेणुहस्तकं

अनङ्गरङ्गसागरं नमामि कृष्णनागरम् ।।१।।

ब्रजभूमि के एकमात्र अलंकार, समस्त पापों का नाश करने वाले तथा अपने भक्तों के चित्त को आनन्दित करनेवाले नन्दनन्दन को मैं सदा भजता हूँ। जिनके सिर पर मनोहर मोर- पंख का मुकुट है, हाथों में सुरीली बांसुरी है तथा जो कामकला के सागर हैं, ऐसे नागर श्रीकृष्ण को नमस्कार करता हूँ।

मनोजगर्वमोचनं विशाललोललोचनं

विधूतगोपशोचनं नमामि पद्मलोचनम् । 

करारविन्दभूधरं स्मितावलोकसुन्दरं

महेन्द्रमानदारणं नमामि कृष्णवारणम् ।।२।। 

कामदेव का गर्व हरने वाले, बड़े-बड़े सुन्दर नेत्रों वाले तथा ब्रजगोपियों का शोक हरने वाले कमलनयन भगवान को मैं नमस्कार करता हूँ। जिन्होंने अपने करकमलों पर गिरिराज को धारण किया था, जिनकी मुस्कान और अवलोकन अति मनोहर हैं। जिन्होंने देवराज इन्द्र के गर्व का नाश किया है, ऐसे वीरों में श्रेष्ठ श्रीकृष्ण को नमस्कार करता हूँ।  

कदम्बसूनकुण्डलं सुचारुगण्डमण्डलं

व्रजाङ्गनैकवल्लभं नमामि कृष्णदुर्लभम् । 

यशोदया समोदया सगोपया सनन्दया

युतं सुखैकदायकं नमामि गोपनायकम् ।।३। 

जिनके कानों में कदम्ब-पुष्पों के कुण्डल शोभा देते हैं, जिनके कपोल सुन्दर और सौम्य हैं तथा व्रजबालाओं के जो एकमात्र प्राणाधार हैं, उन दुर्लभ श्रीकृष्ण को नमस्कार करता हूँ। जो गोपगण और नन्दजी सहित हैं, अति प्रसन्न यशोदाजी जिनके साथ हैं ऐसे एकमात्र आनन्ददायक गोपनायक गोपाल को नमस्कार करता हूँ।  

सदैव पादपङ्कजं मदीयमानसे निजं

दधानमुत्तमालकं नमामि नन्दबालकम् ।

समस्तदोषशोषणं समस्तलोकपोषणं

समस्तगोपमानसं नमामि नन्दलालसम् ।।४।

जिन्होंने हमेशा अपने चरणकमलों को मेरे मनरूपी सरोवर में रखा है उन अति सुन्दर घुंगराले बालोंवाले नन्दकुमार को मैं नमस्कार करता हूँ। समस्त दोषों को दूर करनेवाले. समस्त लोकों का पालन करनेवाले और समस्त व्रजगोपों के हृदयरूप तथा नन्दजी के लालसारूप श्रीकृष्ण भगवान को नमस्कार करता हूँ।  

भुवो भरावतारकं भवाब्धिकर्णधारकं

यशोमतीकिशोरकं नमामि चित्तचोरकम् । 

दृगन्तकान्तभङ्गिनं सदासदालसङ्गिनं

दिने दिने नवं नवं नमामि नन्दसम्भवम् ।।५।। 

भूमि का भार उतारने वाले, संसार सागर के कर्णधार, मनोहर चित्त को हरने वाले यशोदा कुमार को नमस्कार करता हूँ। अति कमनीय कटाक्ष वाले, सदैव सुन्दर आभूषण धारण करनेवाले नित्य नूतन नन्दकुमार को नमस्कार करता हूँ।  

गुणाकरं सुखाकरं कृपाकरं कृपापरं

सुरद्विषन्निकन्दनं नमामि गोपनन्दनम् ।

नवीनगोपनागरं नवीनकेलिलम्पटं

नमामि मेघसुन्दरं तडित्प्रभालसत्पटम् ।।६।।

गुणों के भण्डार, सुखसागर, कृपानिधान, कृपालु गोपाल, जो देवताओं के शत्रुओं का ध्वंस करने वाले हैं, उनको मैं नमस्कार करता हूँ। नित्य नयी लीला करने वाले, मेघश्याम,नटवर नागर गोपाल, बिजली जैसी आभावाले, अति सुन्दर पीताम्बर धारण करने वाले को मैं नमस्कार करता हूँ।  (श्री कृष्णाष्टकम्)

समस्तगोपनन्दनं हृदम्बुजैकमोदनं

नमामि कुञ्जमध्यगं प्रसन्नभानुशोभनम् । 

निकामकामदायकं दृगन्तचारुसायकं

रसालवेणुगायकं नमामि कुञ्जनायकम् ।।७।।

समस्त गोपों को आनन्द देने वाले, उनके हृदय कमल को विकसित करने वाले और जो तेजस्वी सूर्य के समान शोभायमान हैं, उन कुञ्ज के मध्य में रहने वाले श्याम सुन्दर को मैं नमस्कार करता हूँ। जो कामनाओं को भली भांति पूर्ण करने वाले हैं, जिनकी सुन्दर दृष्टि बाणों के समान है, सुमधुर वेणु बजाकर गान करने वाले उन कुञ्जनायक को मैं नमस्कार करता हूँ।  (श्री कृष्णाष्टकम्)

विदग्धगोपिकामनोमनोज्ञतल्पशायिनं

नमामि कुञ्जकानने प्रवृद्धवह्निपायिनम् । 

यदा तदा यथा तथा तथैव कृष्णसत्कथा 

मया सदैव गीयतां तथा कृपा विधीयताम् । 

प्रमाणिकाष्टकद्वयं जपत्यधीत्य यः पुमान् 

भवेत्स नन्दनन्दने भवे भवे सुभक्तिमान् ||८|

जो चतुर गोपिकाओं के मनरूपी सुकोमल शय्या पर शयन करने वाले हैं, कुंजवन में बढ़ती हुई दावाग्नि का पान करने वाले हैं ऐसे श्रीकृष्णचन्द्र को मैं नमस्कार करता हूँ। मैं जब कभी जैसी भी परिस्थिति में रहूँ तब सदा श्रीकृष्णचन्द्र की सत्कथाओं का गान करूं, ऐसी कृपा मुझ पर बरसे। जो पुरुष प्रमाणिका छन्द में रचित इन दोनों अष्टकों का पाठ या जप करेगा वह हर जन्म में नन्दनन्दन श्यामसुन्दर की भक्ति से युक्त होगा। 

इति श्रीमद् शङ्कराचार्यविरचितं  श्री कृष्णाष्टकम् सम्पूर्णम् ।।

श्री कृष्णाष्टकम् के पाठ का महत्व

  • श्री कृष्णाष्टकम् का नियमित पाठ करने से भगवान श्रीकृष्ण की विशेष कृपा प्राप्त होती है और उनके भक्तों को सुख, शांति और समृद्धि का आशीर्वाद मिलता है।
  • यह स्तोत्र मन को पवित्र करता है, नकारात्मक विचारों को दूर करता है और भक्त के हृदय में भक्ति का संचार करता है।
  • जो व्यक्ति किसी समस्या, मानसिक तनाव या दुख में होता है, तो इस स्तोत्र का श्रद्धा से पाठ करने से श्रीकृष्ण उनके दुःख दूर कर देते हैं।
  • यह स्तोत्र भक्ति-मार्ग पर आगे बढ़ने में मदद करता है और साधक को श्रीकृष्ण के चरणों की ओर आकर्षित करता है।
  • श्रीकृष्ण नाम का स्मरण जीवन में आनंद, प्रेम और शांति प्रदान करता है। यह नकारात्मक ऊर्जा को दूर कर सकारात्मकता को बढ़ाता है।
  • श्री कृष्णाष्टकम् का नित्य पाठ करने से जीवन-मरण के बंधन से मुक्ति (मोक्ष) प्राप्त करने में सहायता मिलती है।

श्री कृष्णाष्टकम् का पाठ करने का शुभ समय

  • सुबह और शाम के समय इस स्तोत्र का पाठ कर सकते है।
  • एकादशी, जन्माष्टमी और अन्य पवित्र तिथियों पर इसका पाठ विशेष फलदायी होता है।
  • गुरुवार और सोमवार को पाठ करने से विशेष आध्यात्मिक लाभ मिलता है।

निष्कर्ष (krishnashtakam lyrics in hindi)

इस पोस्ट में हमने श्री कृष्णाष्टकम् -भजे व्रजै कमण्डनं (krishnashtakam lyrics in hindi) अष्टक पूरी जानकारी दी है 

उम्मीद है आप को इस पोस्ट में पूरी जानकारी मिली होगी कृपया इस पोस्ट ज्यादा से ज्यादा शेयर करे।

FAQS (krishnashtakam lyrics in hindi)

1.श्री कृष्णाष्टकम् के रचयिता कौन हे?

श्री कृष्णाष्टकम् आदि शंकराचार्य द्वारा रचित है ।

2.श्री कृष्णाष्टकम् के पाठ का महत्व क्या है ?

यह स्तोत्र मन को पवित्र करता है, नकारात्मक विचारों को दूर करता है और भक्त के हृदय में भक्ति का संचार करता है।

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