महिषासुरमर्दिनि स्तोत्र (Mahishasur mardini stotra)माँ दुर्गा की स्तुति में रचित एक अत्यंत शक्तिशाली एवं प्रभावशाली स्तोत्र है। इसे श्री आदि शंकराचार्य द्वारा रचा गया माना जाता है। इस स्तोत्र का उच्चारण करने के अनेक आध्यात्मिक एवं लाभकारी कारण हैं ।
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महिषासुरमर्दिनि स्तोत्र के पाठ का महत्व(Mahishasur mardini stotra)
- यह स्तोत्र माँ दुर्गा के महिषासुर का वध करने वाले रूप की स्तुति करता है, जिससे साधक को उनकी विशेष कृपा प्राप्त होती है।
- इस स्तोत्र का नियमित पाठ करने से जीवन में आने वाली बाधाएँ, बुरी शक्तियाँ और नकारात्मक ऊर्जाएँ दूर होती हैं।
- यह स्तोत्र शक्ति, पराक्रम और आत्मबल प्रदान करता है, जिससे जीवन में आने वाली चुनौतियों का सामना करने की शक्ति मिलती है।
- यदि कोई कठिन परिस्थितियों में हो, या जीवन में निराशा का अनुभव कर रहा हो, तो इस स्तोत्र का पाठ करने से संकट दूर हो जाते हैं।
- मानसिक शांति, शारीरिक स्वास्थ्य और घर-परिवार में सुख-समृद्धि बनाए रखने के लिए भी इस स्तोत्र का पाठ अत्यंत लाभकारी माना जाता है।
- यह स्तोत्र व्यक्ति के बुरे कर्मों के फल को कम करता है और भाग्य को अच्छा बनाता है।
महिषासुरमर्दिनी स्तोत्र पाठ करने का शुभ समय (Mahishasur mardini stotra)
- नवरात्रि, शुक्रवार, चतुर्दशी, अमावस्या तथा पूर्णिमा के दिन विशेष फलदायी माना जाता है।
- सूर्योदय के समय या संध्या के समय माँ दुर्गा के समक्ष बैठकर इसे श्रद्धापूर्वक पढ़ने से अधिक लाभ मिलता है।
- कम से कम 9 दिनों तक इस स्तोत्र का पाठ करने से विशेष कृपा प्राप्त होती है।
MAHISHASURMARDINI STOTRA
महिषासुरमर्दिनी स्तोत्रम
अयि गिरिनंदिनि नंदितमेदिनि विश्वविनोदिनि नंदनुते
गिरिवर विंध्य शिरोधिनिवासिनि विष्णुविलासिनि जिष्णुनुते |
भगवति हे शितिकण्ठकुटुंबिनि भूरि कुटुंबिनि भूरि कृते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ||1||
सुरवरवर्षिणि दुर्धरधर्षिणि दुर्मुखमर्षिणि हर्षरते
त्रिभुवनपोषिणि शंकरतोषिणि किल्बिषमोषिणि घोषरते |
दनुजनिरोषिणि दितिसुतरोषिणि दुर्मदशोषिणि सिन्धुसुते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ||2||
अयि जगदंब मदंब कदंब वनप्रिय वासिनि हासरते
शिखरि शिरोमणि तुङ्ग हिमालय शृंग निजालय मध्यगते |
मधु मधुरे मधु कैटभ भंजिनि कैटभ भंजिनि रासरते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ||3||
अयि शतखण्ड विखण्डित रुण्ड वितुण्डित शुण्ड गजाधिपते
रिपु गज गण्ड विदारण चण्ड पराक्रम शुण्ड मृगाधिपते |
निज भुज दण्ड निपातित खण्ड विपातित मुण्ड भटाधिपते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ||4||
अयि रण दुर्मद शत्रु वधोदित दुर्धर निर्जर शक्तिभृते
चतुर विचार धुरीण महाशिव दूतकृत प्रमथाधिपते |
दुरित दुरीह दुराशय दुर्मति दानवदूत कृतांतमते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ||5||
अयि शरणागत वैरि वधूवर वीर वराभय दायकरे
त्रिभुवन मस्तक शूल विरोधि शिरोधि कृतामल शूलकरे |
दुमिदुमि तामर दुंदुभिनाद महो मुखरीकृत तिग्मकरे
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ||6||
अयि निज हँकृति मात्र निराकृत धूम्र विलोचन धूम्र शते
समर विशोषित शोणित बीज समुद्भव शोणित बीज लते |
शिव शिव शुंभ निशुंभ महाहव तर्पित भूत पिशाचरते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ||7||
धनुरनु संग रणक्षणसंग परिस्फुर दंग नटत्कटके
कनक पिषंग पृषत्क निषंग रसद्भट शृंग हतावटुके |
कृत चतुरङ्ग बलक्षिति रङ्ग घटद्बहुरङ्ग रटद्बटुके
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ||8||
सुरललनात तथेयि तथेयि तथाभिनयोत्तर नृत्यरते
हास विलास हुलास मयि प्रणतार्त जनेऽमित प्रेमभरे |
धिमिकिटधिक्कट धिकट धिमिध्वनि घोरमृदंगनिनादरते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते || 9 ||
जय जय जप्य जयेजय शब्द परस्तुति तत्पर विश्वनुते
झणझण झिञ्जिमि झिंकृत नूपुर सिंजित मोहित भूतपते |
नटित नटार्ध नटीनट नायक नाटित नाट्य सुगानरते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ||10||
अयि सुमनः सुमनः सुमनः सुमनः सुमनोहर कांतियुते
श्रित रजनी रजनी रजनी रजनी रजनीकर वक्त्रवृते ।
सुनयन विभ्रमर भ्रमर भ्रमर भ्रमर भ्रमराधिपते
जय जय हे महिषासूरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ||11||
सहित महाहव मल्लम तल्लिक मल्लित रल्लक मल्लरते
विरचित वल्लिक पल्लिक मल्लिक झिल्लिक भिल्लिक वर्ग वृते ।
सितकृत फुल्लसमुल्ल सितारुण तल्लज पल्लव सल्ललिते
जय जय हे महिषासूरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ||12||
अविरल गण्ड गलन्मद मेदुर मत्त मतङ्गज राजपते
त्रिभुवन भूषण भूत कलानिधि रूप पयोनिधि राजसुते |
अयि सुद तीजन लालसमानस मोहन मन्मथ राजसुते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ||13||
कमल दलामल कोमल कांति कलाकलितामल भाललते
सकल विलास कलानिलयक्रम केलि चलत्कल हंस कुले |
अलिकुल सङ्कुल कुवलय मण्डल मौलिमिलद्भकुलालि कुले
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ||14||
कर मुरली रव वीजित कूजित लज्जित कोकिल मञ्जुमते
मिलित पुलिन्द मनोहर गुञ्जित रंजितशैल निकुञ्जगते |
निजगुण भूत महाशबरीगण सद्गुण संभृत केलितले
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ||15||
कटितट पीत दुकूल विचित्र मयूखतिरस्कृत चंद्र रुचे
प्रणत सुरासुर मौलिमणिस्फुर दंशुल सन्नख चंद्र रुचे |
जित कनकाचल मौलिपदोर्जित निर्भर कुंजर कुंभकुचे
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ||16||
विजित सहस्रकरैक सहस्रकरैक सहस्रकरैकनुते
कृत सुरतारक सङ्गरतारक सङ्गरतारक सूनुसुते |
सुरथ समाधि समानसमाधि समाधिसमाधि सुजातरते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ||17 ||
पदकमलं करुणानिलये वरिवस्यति योऽनुदिनं स शिवे
अयि कमले कमलानिलये कमलानिलयः स कथं न भवेत्।
तव पदमेव परंपदमित्यनशीलयतो मम किं न शिवे
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ||18||
कनकलसत्कल सिन्धुजलैरनु षिञ्चतितेगुण रङ्गभुवम्
भजति स किं न शचीकुच कुंभ तटी परिरंभ सुखानुभवम् ।
तव चरणं शरणं करवाणि नतामरवाणि निवासि शिवं
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ||19||
तव विमलेन्दुकुलं वदनेन्दुमलं सकलं ननु कूलयते
किमु पुरुहूत पुरीन्दुमुखी सुमुखीभिरसौ विमुखीक्रियते |
मम तु मतं शिवनामधने भवती कृपया किमुत क्रियते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ||20||
अयि मयि दीनदयालुतया कृपयैव त्वया भवितव्यमुमे
अयि जगतो जननी कृपयासि यथासि तथाऽनुमितासिरते |
यदुचितमत्र भवत्युररि कुरुतादुरुतापमपाकुरुते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्य कपर्दिनि शैलसुते ||21||
निष्कर्ष (Mahishasur mardini stotra)
महिषासुरमर्दिनि स्तोत्र माँ दुर्गा की शक्ति और करुणा को समर्पित है। यह भक्तों को शक्ति, साहस, समृद्धि और सुरक्षा प्रदान करता है। इसे श्रद्धा और भक्ति से पढ़ने से जीवन में हर प्रकार की बाधाएँ दूर होती हैं और माँ की कृपा प्राप्त होती है।
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